Bhagavad Gita 4.3
स अवायं माया तेऽद्य योग: प्रोक्त: पुरातन: |
भक्तोऽसि मे सखा चेति रहस्यं ह्येतदुत्तमम्
Translation
उसी प्राचीन गूढ़ योगज्ञान को आज मैं तुम्हारे सम्मुख प्रकट कर रहा हूँ क्योंकि तुम मेरे मित्र एवं मेरे भक्त हो इसलिए तुम इस दिव्य ज्ञान को समझ सकते हो।