हिन्दू संस्कृति के चार वेद ही धर्म ग्रंथ है। वेदो से उपनिषद और उपनिषद से भगवद गीता है। वाल्मीकि कृत रामायण, वेदव्यास रचित महाभारत और पुराण इतिहास और परंपरा के ग्रंथ है। पुराण का अर्थ प्राचीन है। हिन्दू धर्म में मुख्य 18 पुराणों में से एक विष्णु पुराण (Vishnu Puran in Hindi) है, जो महत्वपूर्ण और अत्यन्त प्राचीन है। इस पुराण में भगवान श्री कृष्ण के चरित्र का सम्पूर्ण वर्णन मिलता है। कृष्ण चरित्र होने के साथ राम का भी वर्णन मिलता है। विष्णु पुराण में आकाश, सूर्य, समुद्र, पर्वत, परिणाम और देवी-देवताओ की उतपत्ति का सम्पूर्ण वर्णन है।
अट्ठारह पुराणों में से विष्णु पुराण का स्थान बहुत उचा है। इसके रचयिता पराशर ऋषि हैं। विष्णु पुराण (Vishnu Puran in Hindi) में भूगोल, ज्योतिष, कर्मकाण्ड, राजवंश और श्रीकृष्ण चरित्र आदि कई प्रसंगोंका बड़ा ही अद्भुत और उज्ज्वल वर्णन किया गया है। भक्ति और ज्ञानकी प्रशान्त धारा तो इसमें सर्वत्र ही प्रसंन रूपसे वह रही है। अगर ऐसा है भी यह पुराण विष्णुपरक है तो भी भगवान् शिव के लिये इस पुराण में कहीं भी अनुदार भाव प्रकट नहीं किया है। सम्पूर्ण विष्णु पुराण (Vishnu Puran in Hindi) में शिवजी का प्रसंग बाणासुर संग्राम में ही आता है। स्वयं भगवान् श्री कृष्ण शिवजी के साथ अपनी अभिन्नता प्रकट करते हुए श्री भगवान कृष्ण अपने मुखसे कहते हैं-
यदभयं दत्तं तद्दत्तमखिलं मया मत्तोऽविभिन्नमात्मानं द्रष्टुमर्हसि शङ्कर ॥४७॥
योऽहं स त्वं जगच्चेदं सदेवासुरमानुषम्।
मत्तो नान्यदशेषं यत्तत्त्वं ज्ञातुमिहार्हसि ॥४८॥
अविद्यामोहितात्मानः पुरुषा भिन्नदर्शिनः ।
वदन्ति भेदं पश्यन्ति चावयोरन्तरे हर ॥ ४९ ॥
विष्णु पुराण (Vishnu Puran in Hindi) बाकि के सभी पुराणों से छोटा है। विष्णु पुराण 6 भागो में विभाजित हे। कई ग्रंथो में 23,000 श्लोक का उल्लेख मिलता है, परंतु इस समय 7,000 श्लोक ही मिलते है। विष्णु पुराण वेदव्यास के पिता पराशर ऋषि द्वारा रचित है। विष्णु पुराण में भगवान विष्णु के अवतारों का वर्णन, उसके भक्तो का वर्णन मिलता है।
प्रथम अध्याय में सृष्टि की उत्पत्ति, काल का स्वरूप, तथा ध्रुव, पृथु तथा प्रह्लाद रोचक कथाएँ दी गई है। दूसरे अध्याय में लोको के स्वरूप, पृथ्वी के नौ खंडों, ग्रह, नक्षत्र, ज्योतिष का वर्णन मिलता है। तीसरे अध्याय में मन्वंतर, वेद की शाखाओं का विस्तार, गृहस्थ धर्म और श्राद्ध विधि के बारेमे कहा गया है। चौथे अध्याय में सूर्य वंश और चंद्र वंश के राजा के वचन और उनकी वंशावलियों का सम्पूर्ण वर्णन किया गया है। अध्याय पांच में भगवान श्री कृष्ण के चरित्र का वर्णन मिलता है। और छठे अध्याय में प्रलय और मोक्ष के बारेमें उल्लेख मिल जाता है।
18 puran में विष्णु पुराण (Vishnu Puran Hindi) का आकार सबसे छोटा है, विष्णु पुराण (Vishnu Puran Ki Katha) में भगवान विष्णु के चरित्र का विस्तृत वर्णन है। विष्णु पुराण (Vishnu Puran Katha) के रचियता ब्यास जी के पिता पराशर जी हैं। विष्णु पुराण (Vishnu Puran in Hindi) में वर्णन आता है कि जब पाराशर के पिता शक्ति को राक्षसों ने मार डाला तब क्रोध में आकर पाराशर मुनि ने राक्षसों के विनाश के लिये ‘‘रक्षोघ्न यज्ञ’’ प्रारम्भ किया। उसमें हजारों राक्षस गिर-गिर कर स्वाहा होने लगे। इस पर राक्षसों के पिता पुलस्त्य ऋषि और पाराशर के पितामह वशिष्ठ जी ने पाराशर को समझाया और वह यज्ञ बन्द किया। इससे पुलस्त्य ऋषि बड़े प्रसन्न हुये औरा पाराशर जी को विष्णु पुराण के रचियता होने का आर्शीवाद दिया।
इसी कारण धरती को ‘पृथ्वी’ नाम दिया गया । ‘ध्रुव’ के आख्यान में सांसारिक सुख, ऐश्वर्य, धन-सम्पत्ति आदि को क्षण भंगुर अर्थात् नाशवान समझकर आत्मिक उत्कर्ष की प्रेरणा दी गई है। प्रह्लाद के प्रकरण में परोपकार तथा संकट के समय में भी सिद्धांतों और आदर्शों का त्याग नहीं करने की बात कही गई है।
विष्णु पुराण में भगवान विष्णु के अवतार श्री कृष्ण चरित्र वर्णन मुख्य है। संक्षेप में राम कथा का उल्लेख भी मिलता है। इस पुराण में कृष्ण के समाज सेवी, प्रजा प्रेमी, लोक रंजक तथा लोक हित को प्रकट करते हुए उन्हें महामानव की संज्ञा दी गई है। भगवान श्रीकृष्ण ने प्रजा को एकता रखने की शक्ति का महिमा समझाया और अन्याय का प्रतिशोध करने की प्रेरणा दी। अधर्म के विरुद्ध धर्म-शक्ति का परचम लहराया।
महाभारत’ में कौरवों का विनाश उनकी लोकोपकारी छवि दिखाई देती है। भगवान श्रीकृष्ण के जीवन में लोकोपयोगी घटनाओं को अद्भुत रूप से प्रस्तुत करना भक्ति का लक्षण है। उस महामानव के लिए भक्ति-भाव रखना भी एक निशानी है। विष्णु पुराण में कृष्ण चरित्र के साथ-साथ भक्ति और वेदान्त के उत्तम सिद्धान्तों का भी भली- भाँति ज्ञान हुआ है। ‘आत्मा’ को जन्म-मृत्यु से हीन बताया गया है। आदि प्राणियों में आत्मा का ही निवास स्थान है।
विष्णु पुराण में ऋषिओं, शूद्रों,और स्त्रियों को श्रेष्ठ माना जाता है। जो स्त्री अपने तन-मन से पति की सेवा तथा सुख की कामना करती है, उसे अन्य कर्म किए बिना ही सदगति मिलती है। इसी प्रकार शूद्र भी अपने कर्त्तव्यों का पालन करते हुए वह सब प्राप्त कर लेते हैं, जो ब्राह्मणों को विभिन्न प्रकार के कर्मकाण्ड और तप आदि से प्राप्त होता है। कहा गया है-
शूद्रोश्च द्विजशुश्रुषातत्परैद्विजसत्तमा: ।
तथा द्भिस्त्रीभिरनायासात्पतिशुश्रुयैव हि॥
अर्थात शूद्र ब्राह्मणों की सेवा से और स्त्रियां पति की सेवा से ही धर्म को प्राप्ति कर लेती हैं।
विष्णु पुराण में मनुष्य जीवन को सर्वोत्तम कहा गया है। मनुष्य जन्म लेने के लिए देवता भी इच्छुक रहते है। मनुष्य मोह माया की जाल से मुक्त होकर उचित कर्म करता है। विष्णु पुराण में ‘निष्काम कर्म’ और ‘ज्ञान मार्ग’ का सन्देश दिया गया है। मनुष्य जीवन में कर्म मार्ग और धर्म मार्ग दोनों का ही पालन किया जाता है। कर्तव्य निभाते हुऐ मनुष्य चाहे वन रहे या घर में भगवान को प्राप्त कर ही लेता है।
पहले भाग :- में सर्ग अथवा सृष्टि की उत्पत्ति, काल का स्वरूप और ध्रुव, पृथु तथा प्रह्लाद की कथाएं दी गई हैं।
दूसरे भाग :- में लोकों के स्वरूप, पृथ्वी के नौ खण्डों, ग्रह-नक्षत्र , ज्योतिष आदि का वर्णन है।
तीसरे भाग :- में मन्वन्तर, वेद (ved) की शाखाओं का विस्तार, गृहस्थ धर्म और श्राद्ध-विधि आदि का उल्लेख है।
चौथे भाग :- में सूर्य वंश और चन्द्र वंश के राजागण तथा उनकी वंशावलियों का वर्णन है।
पांचवें भाग :- में भगवान कृष्ण (lord krishna) चरित्र और उनकी लीलाओं का वर्णन है
छठे भाग ;- में प्रलय तथा मोक्ष का उल्लेख है।