माण्डूक्य उपनिषद हिंदी में पढ़ें

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माण्डूक्य उपनिषद: एक संक्षिप्त परिचय

माण्डूक्य उपनिषद, संस्कृत में रचित, वैदिक काल के ऋषियों द्वारा रचित मानी जाती है। इसमें आत्मा और चेतना के चार अवस्थाओं - जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्ति, और तुरीय - का वर्णन मिलता है। यह उपनिषद अथर्ववेद के ब्राह्मण भाग का हिस्सा है। इसके केवल बारह मंत्र हैं, लेकिन इसका महत्व अत्यधिक है क्योंकि यह आध्यात्मिक ज्ञान का संक्षिप्त सार प्रस्तुत करता है।

मुख्य विषय:

1. ॐ और ब्रह्म:

इस उपनिषद में 'ॐ' को अक्षरब्रह्म या परमात्मा के रूप में स्वीकार किया गया है।

'ॐ' के विभिन्न चरणों और मात्राओं का विवेचन करते हुए अव्यक्त परमात्मा के व्यक्त विराट जगत् का उल्लेख किया गया है।

2. Fचेतना के चार अवस्थाएँ:

जाग्रत अवस्था: वैश्वानर, जो बाह्य रूप से बोध कराता है।

स्वप्न अवस्था: तैजस, जो आंतरिक जगत का अनुभव कराता है।

सुषुप्ति अवस्था: प्राज्ञ, जो एकमात्र आनन्द का बोध कराता है।

तुरीय अवस्था: चौथा चरण, जो शान्त, अद्वैत, और कल्याणकारी है।

विवरण:

1. ॐ की महिमा:

'ॐ' अविनाशी ब्रह्म का प्रतीक है।

यह सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का स्वरूप है।

भूत, भविष्य, और वर्तमान तीनों कालों में व्याप्त है।

2. आत्मा और परमात्मा:

आत्मा ब्रह्म का ही स्वरूप है।

ब्रह्म और आत्मा चार चरणों - स्थूल (वैश्वानर), सूक्ष्म, कारण, और अव्यक्त - में प्रकट होते हैं।

3. तीन मात्राएँ: अ, उ, म:

'अकार' (अ) जाग्रत अवस्था का प्रतिनिधित्व करता है।

'उकार' (उ) स्वप्न अवस्था का प्रतिनिधित्व करता है।

'मकार' (म्) सुषुप्ति अवस्था का प्रतिनिधित्व करता है।

यह त्रियामी विश्व भूत, भविष्य, और वर्तमान का प्रतीक है।

यह सत्, रज, और तम गुणों का भी प्रतीक है।

ध्यान और आत्मज्ञान:

माण्डूक्य उपनिषद ध्यान द्वारा परमात्मा के चेतन और अचेतन स्वरूप को जानने की विधि बताता है।

इसे वाणी से प्रकट करना कठिन है, लेकिन इसे अनुभव किया जा सकता है।

आत्मज्ञानी साधक अपने आत्मज्ञान द्वारा आत्मा को परब्रह्म में प्रविष्ट कराता है और अद्वैत सम्बन्ध स्थापित करता है।

निष्कर्ष:

माण्डूक्य उपनिषद, अपने संक्षिप्त रूप में, आत्मा और परमात्मा के गहन ज्ञान को संजोये हुए है। इसके मंत्रों में अद्वैत वेदांत के सिद्धांतों को सरल और संक्षेप में प्रस्तुत किया गया है, जो साधकों को आत्मज्ञान और ब्रह्मानुभूति की ओर प्रेरित करता है। यह उपनिषद ध्यान और योग के माध्यम से आत्मा और ब्रह्म के एकत्व की प्राप्ति का मार्ग दिखाता है।