कठोपनिषद, कृष्ण यजुर्वेद की कठ शाखा के अन्तर्गत एक महत्वपूर्ण उपनिषद है। इसमें दो अध्याय हैं, और प्रत्येक अध्याय में तीन खंड (वल्ली) हैं। इस उपनिषद में कुल 119 श्लोक हैं और यह शांतिपाठ से शुरू होता है, जो अध्ययन में आने वाली बाधाओं को दूर करने का उद्देश्य रखता है।
कठोपनिषद में यमराज और नचिकेता के बीच संवाद रूप में ब्रह्म विद्या का विस्तृत वर्णन है।
यह संवाद शैली सरल और सुबोध है, जिससे इसे समझना आसान है।
प्रथम वल्ली: नचिकेता का यमराज से प्रथम और द्वितीय वरदान मांगना।
द्वितीय वल्ली: नचिकेता का तृतीय वरदान मांगना और आत्मा की अमरता पर चर्चा।
तृतीय वल्ली: ब्रह्म विद्या का विस्तार, नचिकेता का आत्मज्ञान प्राप्त करना।
पहला वरदान: नचिकेता अपने पिता की चिंता को समाप्त करने का वरदान मांगता है।
दूसरा वरदान: वह यमराज से स्वर्गलोक के सुखों के बारे में ज्ञान मांगता है।
तीसरा वरदान: वह आत्मा और मृत्यु के रहस्य को जानना चाहता है।
आत्मज्ञान: यमराज आत्मा की अमरता और ब्रह्म विद्या का ज्ञान नचिकेता को प्रदान करते हैं।
अद्वैत ज्ञान: आत्मा और ब्रह्म का अद्वैत संबंध और मोक्ष की प्राप्ति पर चर्चा।
यह उपनिषद तत्त्वज्ञान का गहन विवेचन प्रस्तुत करता है और नचिकेता का चरित्र एक आदर्श स्थापित करता है।
श्रीमद्भगवद्गीता में इसके कई श्लोकों का उल्लेख है, जिससे इसका महत्त्व और बढ़ जाता है।
यह उपनिषद उन धार्मिक और दार्शनिक विचारों के विकास में रुचि रखने वालों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
कठोपनिषद मृत्यु से अमरता की ओर जाने वाले प्राचीन मार्ग को दर्शाता है।
यह मार्ग न केवल भारत या हिंदू धर्म तक सीमित है, बल्कि किसी भी धार्मिक परंपरा के साधकों के लिए खुला है।
इसके रचयिता कठ नाम के तपस्वी आचार्य थे, जो मुनि वैशम्पायन के शिष्य थे और यजुर्वेद की कठशाखा के प्रवर्तक थे।
कठोपनिषद आत्मज्ञान और मोक्ष की प्राप्ति का मार्गदर्शन करता है। यम और नचिकेता के संवाद के माध्यम से ब्रह्म विद्या का विवेचन, नचिकेता का अद्वितीय चरित्र, और आत्मा की अमरता का गहन ज्ञान, इसे उपनिषदों में विशेष स्थान प्रदान करते हैं। यह ग्रंथ हमें न केवल बौद्धिक दृष्टिकोण से बल्कि व्यावहारिक जीवन में भी एक सच्चे मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।