Bhagavad Gita 9.31
क्षिप्रं भवति धर्मात्मा शश्वच्छन्तिं निगच्छति |
कौन्तेय प्रतिजानिहि न मे भक्त: प्रणश्यति
Translation
वे शीघ्र धार्मात्मा बन जाते हैं और चिरस्थायी शांति पाते हैं। हे कुन्ती पुत्र! निडर हो कर यह घोषणा कर दो कि मेरे भक्त का कभी पतन नहीं होता।