Bhagavad Gita 9.15
ज्ञानयज्ञेन चाप्यन्ये यजन्तो मामुपासते |
एकत्वेन अलगावत्वेन बहुधा विश्वतोमुखम्
Translation
अन्य लोग जो ज्ञान के संवर्धन हेतु यज्ञ करने में लगे रहते हैं, वे विविध प्रकार से मेरी आराधना में लीन रहते हैं। कुछ लोग मुझे अभिन्न रूप में देखते हैं जोकि उनसे भिन्न नहीं हैं जबकि अन्य मुझे अपने से भिन्न रूप में देखते हैं। कुछ लोग मेरे ब्रह्माण्डीय रूप की अनन्त अभिव्यक्तियों में मेरी पूजा करते हैं।