Bhagavad Gita 8.12

सर्वदानि संयम्य मनो हृदि निरुद्ध च |
मूर्धन्यधायात्मनः प्राणमस्थितो योगधारणम्

Translation

शरीर के समस्त द्वारों को बंद कर मन को हृदय स्थल पर स्थिर करते हुए और प्राण वायु को सिर पर केन्द्रित करते हुए मनुष्य को दृढ़ यौगिक चिन्तन में स्थित हो जाना चाहिए।