Bhagavad Gita 7.22
स तय श्रद्धया युक्तस्तस्याराधनमीहते |
लभते च तत: कामानमयैव विहितानहि तं
Translation
श्रद्धायुक्त होकर ऐसे भक्त विशेष देवता की पूजा करते हैं और अपनी वांछित वस्तुएँ प्राप्त करते हैं किन्तु वास्तव में ये सब लाभ मेरे द्वारा ही प्रदान किए जाते हैं।