Bhagavad Gita 6.21

सुखमात्यन्तिकं यत्तद्बुद्धिग्राह्यमतिन्द्रियम् |
वेत्ति यत्र न चैवायं स्थितश्चलति तत्त्वत:

Translation

योग में चरम आनन्द की अवस्था को समाधि कहते हैं जिसमें मनुष्य असीम दिव्य आनन्द प्राप्त करता है और इसमें स्थित मनुष्य परम सत्य के पथ से विपथ नहीं होता।