Bhagavad Gita 5.27

स्पर्शान्कृत्वा बहिर्बाह्यन्श्चक्षुश्चैवन्तरे भ्रुवो: |
प्राणापानौ समौ कृत्वा नासाभ्यन्तरचारिणौ

Translation

समस्त बाह्य इन्द्रियाँ सुख के विषयों का विचार न कर अपनी दृष्टि को भौहों के बीच के स्थान में स्थित कर नासिका में विचरने वाली भीतरी और बाहरी श्वासों के प्रवाह को सम करते करें।