Bhagavad Gita 5.15
नादत्ते कस्यचित्पापं न चैव सुकृतं विभु: |
अज्ञानेनावृतं ज्ञानं तेन मुह्यन्ति जन्तव:
Translation
सर्वव्यापी परमात्मा किसी के पापमय कर्मों या पुण्य कर्मों में स्वयं को लिप्त नहीं करते। किन्तु जीवात्माएँ मोहग्रस्त रहती हैं क्योंकि उनका वास्तविक आत्मिक ज्ञान अज्ञान से आच्छादित रहता है।