Bhagavad Gita 5.13
सर्वकर्माणि मनसा संन्यस्यास्ते सुखं वशी |
नवद्वारे पूरे देहि नैव कुर्वन्न कारायन्
Translation
जो देहधारी जीव आत्मनियंत्रित एवं निरासक्त होते हैं, नौ द्वार वाले भौतिक शरीर में भी वे सुखपूर्वक रहते हैं क्योंकि वे स्वयं को कर्त्ता या किसी कार्य का कारण मानने के विचार से मुक्त होते हैं।