Bhagavad Gita 4.5

भगवान श्रीउवाच |
बहुनि मे रुचिआनि जन्मानि तव चार्जुन |
तान्यहं वेद सर्वाणि न त्वं वेत्थ परन्तप

Translation

तुम्हारे और मेरे अनन्त जन्म हो चुके हैं किन्तु हे परन्तप! तुम उन्हें भूल चुके हो जबकि मुझे उन सबका स्मरण है।