Bhagavad Gita 4.38

न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते |
तत्सस्वयं योगसंसिद्ध: कालेनात्मनि विन्दति

Translation

इस संसार में दिव्यज्ञान के समान कुछ भी शुद्ध नहीं है। जो मनुष्य दीर्घकालीन योग के अभ्यास द्वारा मन को शुद्ध कर लेता है वह उचित समय पर हृदय में इस ज्ञान का आस्वादन करता है।