Bhagavad Gita 4.33
श्रेयान्द्रव्यमाद्यज्ञज्ञयज्ञः परन्तप |
सर्वं कर्मखिलं पार्थ ज्ञाने परिसमाप्यते
Translation
हे शत्रुओं के दमन कर्ता! ज्ञान युक्त होकर किया गया यज्ञ किसी प्रकार के भौतिक या द्रव्य यज्ञ से श्रेष्ठ है। हे पार्थ! अंततः सभी यज्ञों की पराकाष्ठा दिव्य ज्ञान में होती है।