Bhagavad Gita 3.37
भगवान श्रीउवाच |
काम एष क्रोध एष रजोगुणसमुद्भव: |
महाशनो महापापमा विध्येनमिह वैरिणम्
Translation
परमात्मा श्रीकृष्ण कहते हैं-अकेली काम वासना जो रजोगुण के सम्पर्क में आने से उत्पन्न होती है और बाद में क्रोध का रूप धारण कर लेती है, इसे पाप के रूप में संसार का सर्वभक्षी शत्रु समझो।