अध्याय
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वेद
पुराण
उपनिषद
भाषा
English
हिंदी
ગુજરાતી
Bhagavad Gita 18.57
चेतसा सर्वकर्माणि मयि सन्न्यास्य मत्पर: |
बुद्धियोगमुपाश्रित्य मच्चित्त: सततं भव
Translation
अपने सभी कर्म मुझे समर्पित करो और मुझे ही अपना लक्ष्य मानो, बुद्धियोग का आश्रय लेकर अपनी चेतना को सदैव मुझमें लीन रखो।