Bhagavad Gita 18.55

भक्त्या मामभिजानाति यावान्यश्चास्मि तत्त्वत: |
ततो माँ तत्त्वतो ज्ञात्वा विशते तदनन्तरम्

Translation

मेरी प्रेममयी भक्ति से कोई मुझे सत्य के रूप में जान पाता है। तब यथावत सत्य के रूप में मुझे जानकर मेरा भक्त मेरे पूर्ण चेतन स्वरूप को प्राप्त करता है।