Bhagavad Gita 18.52

विविक्तसेवी लघुवशि यतवाक्कयमानस: |
ध्यानयोगपरो नित्यं वैराग्यं समुपाश्रित:

Translation

ऐसा व्यक्ति जो एकांत वास करता है, अल्प भोजन करता है, शरीर मन और वाणी पर नियंत्रण रखता है, सदैव ध्यान में लीन रहता है, वैराग्य का अभ्यास करता है