Bhagavad Gita 18.32

अधर्मं धर्ममिति या मन्यते तमसावृता |
सर्वार्थान्विपरीतान्श्च बुद्धिः सा पार्थ तामसी

Translation

जो बुद्धि अंधकार से आच्छादित रहती है, अधर्म में धर्म, असत्य में सत्य की कल्पना करती है, वह तामसिक प्रकृति की होती है।