अध्याय
अध्याय 1
अध्याय 2
अध्याय 3
अध्याय 4
अध्याय 5
अध्याय 6
अध्याय 7
अध्याय 8
अध्याय 9
अध्याय 10
अध्याय 11
अध्याय 12
अध्याय 13
अध्याय 14
अध्याय 15
अध्याय 16
अध्याय 17
अध्याय 18
वेद
पुराण
उपनिषद
भाषा
English
हिंदी
ગુજરાતી
Bhagavad Gita 18.32
अधर्मं धर्ममिति या मन्यते तमसावृता |
सर्वार्थान्विपरीतान्श्च बुद्धिः सा पार्थ तामसी
Translation
जो बुद्धि अंधकार से आच्छादित रहती है, अधर्म में धर्म, असत्य में सत्य की कल्पना करती है, वह तामसिक प्रकृति की होती है।