Bhagavad Gita 16.20
आसुरीं योनिमापन्न मूढ़ा जन्मनि जन्मनि |
मामप्राप्यैव कौन्तेय ततो यान्त्यधामं गतिम्
Translation
ये अज्ञानी आत्माएँ बार-बार आसुरी प्रकृति के गर्थों में जन्म लेती हैं। मुझ तक पहुँचने में असफल होने के कारण हे अर्जुन! वे शनैः-शनैः अति अधम जीवन प्राप्त करते हैं।