Bhagavad Gita 15.2

अधश्चोर्ध्वं प्रसृतास्तस्य शाखा गुणप्रवृद्ध विषयप्रवाला: |
अधश्च मूलान्यनुसंतानि कर्मानुबंधिनी मनुष्यलोके

Translation

इस वृक्ष की शाखाएँ ऊपर तथा नीचे की ओर फैलती हैं और इन्द्रिय विषयों के साथ कोमल कोंपलों के समान तीनों गुणों द्वारा पोषित होती हैं। वृक्ष की जड़ें नीचे की ओर भी लटकी होती हैं जिसके कारण मानव जन्म में कर्मों का प्रवाह होता है। इसकी नीचे के ओर की जड़ों की शाखाएँ संसार में मानव जाति के कर्मों का कारण हैं।