Bhagavad Gita 15.11

यतन्तो योगिनश्चैनं पश्यन्त्यात्मन्यवस्थितम् |
यतन्तोऽप्यकृतात्मानो नैनं पश्यन्त्यचेतस:

Translation

भगवद्प्राप्ति के लिए प्रयासरत योगी यह जानने में समर्थ हो जाते हैं कि आत्मा शरीर में प्रतिष्ठित है किन्तु जिनका मन शुद्ध नहीं है वे प्रयत्न करने के बावजूद भी इसे जान नहीं सकते।