Bhagavad Gita 14.22
भगवान श्रीउवाच |
प्रकाशं च प्रवृत्तिं च मे मोहव च पाण्डव |
न द्वेष्टि सम्प्रवृत्तानि न निवृत्तानि काङ् हानि
Translation
परम पुरुषोत्तम भगवान ने कहा-हे अर्जुन! तीनों गुणों से गुणातीत मनुष्य न तो प्रकाश, (सत्वगुण से उदय) न ही कर्म, (रजोगुण से उत्पन्न) और न ही मोह (तमोगुण से उत्पन्न) की बहुतायत उपलब्धता होने पर इनसे घृणा करते हैं