Bhagavad Gita 11.52

भगवान श्रीउवाच |
सुदुरदर्शमिदं रूपं दृष्टवानसि यनमम् |
देवा अप्यस्य रूपस्य नित्यं दर्शनकाङ्क्षिण:

Translation

परम प्रभु ने कहा-मेरे जिस रूप का तुम अवलोकन कर रहे हो उसे देख पाना अति दुष्कर है। यहाँ तक कि स्वर्ग के देवताओं को भी इसका दर्शन करने की उत्कंठा होती है।