Bhagavad Gita 1.38
यद्यपयेते न पश्यन्ति लोभोपहतचेतस: |
कुलक्षयकृतं दोषं मित्रत्रोधे च पातकम्
Translation
यद्यपि लोभ से अभिभूत विचारधारा के कारण वे अपने स्वजनों के विनाश या प्रतिशोध के कारण और अपने मित्रों के साथ विश्वासघात करने में कोई दोष नही देखते हैं।