छांदोग्य उपनिषद (Chandogya Upanishad) सामवेदीय तलवकार ब्राह्मण के अंतर्गत आता है, जैसे केनोपनिषद भी तलवकार शाखा का है। इस उपनिषद की वर्णन शैली अत्यंत क्रमबद्ध और युक्तिपूर्ण है। इसमें तत्त्व-ज्ञान और तदुपयोगी कर्म तथा उपासनाओं का विस्तृत वर्णन मिलता है। छांदोग्य उपनिषद को भारतीय आध्यात्मिक विद्या की तीन गुना नींव में से एक माना जाता है, अन्य दो हैं ब्रह्मसूत्र और भगवद गीता।
छांदोग्य उपनिषद में तत्त्व-ज्ञान और उपासना का व्यापक विवरण है। प्राचीन समय में इसके कर्म और उपासना का बड़ा महत्व था, हालांकि आजकल यह ज्ञान दुर्लभ हो गया है।
यह उपनिषद दार्शनिक और रहस्यमय ग्रंथों में प्रमुख है, और भारतीय संस्कृति के आध्यात्मिक संदेश को प्रकट करता है।
दस प्रमुख उपनिषदों में से छांदोग्य और बृहदारण्यक उपनिषद अपने भव्य कद और महिमा में विशेष स्थान रखते हैं। बृहदारण्यक अस्तित्व के हर स्तर पर जोर देता है, जबकि छांदोग्य उपनिषद जीवन के मुद्दों पर यथार्थवादी दृष्टिकोण अपनाता है।
यह खंड ब्रह्मांडीय ध्यान का शास्त्रीय प्रस्तुति है।
इस अध्याय में ऋषि उद्दालक द्वारा अपने पुत्र श्वेतकेतु को दिए गए निर्देशों का विवरण है।
यह अध्याय नारद को ऋषि सनतकुमार द्वारा दी गई शिक्षा पर आधारित है।
इस अध्याय में उपनिषद का समापन होता है।
संवर्ग-विद्या और सांडिल्य-विद्या: उपनिषद के अन्य स्थानों पर वर्णित संवर्ग-विद्या और सांडिल्य-विद्या को भी अंत में सम्मिलित किया गया है, जो ध्यान के उत्तेजक टुकड़े हैं।
छांदोग्य उपनिषद का अध्ययन भारतीय दार्शनिक और आध्यात्मिक साहित्य में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इसका गहन अध्ययन ब्रह्मांडीय ध्यान और जीवन के यथार्थवादी दृष्टिकोण को समझने में मदद करता है। यह उपनिषद अपने गहरे दार्शनिक और आध्यात्मिक संदेश के कारण अद्वितीय है और भारतीय संस्कृति की महत्वपूर्ण धरोहर है।